हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019-20 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है।RBI के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था में आई गिरावट वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भी जारी रह सकती है।वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक की कुल मांग के आकलन से पता चलता है कि COVID-19 महामारी के कारण खपत में भारी गिरावट आई है।
RBI के अनुसार, उपभोग में आई इस कमी को दूर करने और अर्थव्यवस्था में पूर्व- COVID दौर की गति को फिर से प्राप्त करने में काफी समय लग रहा है।
- रेटिंग एजेंसियों के अनुसार, COVID-19 महामारी के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देश की जीडीपी में 20% तक की गिरावट का अनुमान है।
- RBI के अनुसार, इस महामारी ने नई विषमताओं को उजागर किया है।जहाँ कार्यालयों में प्रबंधन या डेस्क से जुड़े अधिकांश कर्मचारी घरों पर रहकर अपना कार्य करने में सक्षम हैं वहीं अति आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों को कार्यस्थल से अपना कार्य करने पर विवश होना पड़ा है जिससे उनके संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
- शहरी खपत में भारी कमी देखने को मिली है।पहली तिमाही में यात्री वाहनों और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की बिक्री घटकर क्रमशः 20% और 33% ही रह गई।
- RBI के अनुसार, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव उतना गंभीर नहीं रहा है।हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक मज़दूरी में आई कमी के कारण मांग में हुई गिरावट पर पूर्ण सुधार नहीं संभव हो सका है।
- अर्थव्यवस्था की क्षति को कम करने के लिये मार्च से लेकर अब तक RBI द्वारा बाज़ार में लगभग 10 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है। रेपो रेट में 115 बेसिस पॉइंट की कटौती करते हुए इसे 4% तक कर दिया।
- सितंबर 2019 में सरकार द्वारा कॉर्पोरेट टैक्स में की गई कटौती अपेक्षा के अनुरूप निवेश चक्र को पुनः शुरू करने में सफल नहीं रही है।अधिकांश कंपनियों द्वारा इस छूट का उपयोग अपने ऋण को कम करने और कैश बैलेंस को बनाए रखने में किया गया।
- RBI के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान बैंक धोखाधड़ी के कुल मामलों में 80% सार्वजनिक बैंकों और लगभग 18.4% निजी बैंकों से संबंधित थे।
- आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही के दौरान भी (हेडलाइन मुद्रास्फीति) में वृद्धि बनी रह सकती है, लेकिन तीसरी तिमाही से इसमें कुछ कमी अनुमान है।
महामारी की समाप्ति के पश्चात संभावित घाटे को कम करने और वित्तीय स्थिरता के साथ अर्थव्यवस्था को मज़बूत तथा सतत् विकास के मार्ग पर लाने हेतु उत्पाद बाज़ारों, वित्तीय क्षेत्र, विधि एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा से जुड़े व्यापक संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता होगी।RBI के अनुसार, परिसंपत्ति मुद्रीकरण और प्रमुख बंदरगाहों के निजीकरण से प्राप्त धन के माध्यम से लक्षित सार्वजनिक निवेश को अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने का एक व्यवहारिक उपाय बताया है।