उत्तरवैदिक काल
चित्रित धूसर मिट्टी के बर्तन और लोहे के उपकरण बाद के वैदिक काल के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं। 1000 ईसा पूर्व में पाकिस्तान के गांधार में लोहे के औजार मिले हैं। 800 ईसा पूर्व के आसपास गंगा यमुना दोआब में अतरंजीखेड़ा से लोहे के औजार के प्रमाण मिले हैं। पहली बार, कृषि से संबंधित लोहे के उपकरण यहां से प्राप्त हुए हैं। बाद के वैदिक ग्रन्थ यजुर्वेद में, “श्याम अयस और कृष्ण अयस” शब्दों का उपयोग लोहे के लिए किया गया है। लोहे के औजारों के उपयोग ने गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र को साफ करने और आर्यों को पूरे उत्तर भारत में फैलाना आसान बना दिया। मध्य देश इसका मुख्य केंद्र था। इस काल के अध्ययन के महत्तवपूर्ण साहित्यिक स्त्रोत सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, ब्रम्हाण आरण्यक एवं उपनिषद है उत्तरवैदिक काल में पुरु एवं भरत कबीला मिलकर कुरु तथा तुर्वस एवं क्रिवि मिलकर पांचाल कहलाए।
प्रारंभिक कुरुओ की राजधानी आसन्दीवत थी जिसके अंतर्गत कुरुक्षेत्र (सरस्वती एवं दृषद्वती के बीच भूमि ) सम्मिलित था। बाद में हस्तिनापुर उसकी राजधानी हो गया। अर्थववेद में कुरु राज्य की समृध्दि का चित्रण है। यहाँ का प्रमुख राजा परीक्षित एवं जनमेजय थें। परीक्षित को “मृत्युलोक का देवता” कहा गया है। कुरु शासक परीक्षित नाम अथर्ववेद में मिलता है। कुरु शासक जनमेजय के बारे में कहा जाता है की उसने दो सर्पसत्र तथा दो अश्वमेध यज्ञ किए। कुरु वंश का अंतिम शासक ‘निचक्षु’ अपनी राजधानी हस्तिनापुर से कौशाम्बी ले गया, क्योंकि हस्तिनापुर बाढ़ में नष्ट हो गया था।
पांचाल क्षेत्र के अंतर्गत आधुनिक बरेली बदायूं और फर्रुखाबाद आता था जिसकी राजधानी काम्पिल्य थीं।। पांचाल दार्शनिक राजाओं के लिए प्रसिद्ध थे। पंचालों के प्रसिद्ध शासक प्रप्रवाहन जैविल विद्वानों के संरक्षक थे। अरुणी, श्वेतकेतु इसी क्षेत्र के थे। उत्तरवैदिक काल में पांचाल सबसे विकसित राज्य था। शतपथ ब्राह्मण में, पांचाल को वैदिक सभ्यता का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कहा गया है। इसके पश्चात् आर्यों का विस्तार वरुणाअसि नदी तक हुआ था और ‘काशी’ राज्य की स्थापना हुई। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, विदेहमाधव ने अपने गुरु राहुगण की मदद से इस क्षेत्र को आग से खत्म कर दिया। अजातशत्रु काशी के प्रसिद्ध दार्शनिक राजा थे।
उपनिषद काल में विदेह ने पांचाल का स्थान ले लिया। विदेह की राजधानी मिथिला थी। विदेह के राजा जनक एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। इस अवधि में, सरयू नदी के तट पर कौशल राज्य की स्थापना की गई थी, जो रामकथा से जुड़ा हुआ है। गांधार जिला सिंधु नदी के दोनों किनारों पर था। कैकेय देश गांधार और ब्यास नदी के बीच स्थित था, जिसके दार्शनिक राजा अश्वपति कैकेय थे। मत्स्य देश की स्थापना राजस्थान के जयपुर, अलवर और भरतपुर के बीच हुई थी। काशीनगर मध्य क्षेत्र में स्थापित किया गया था। अथर्ववेद में अंग और मगध को दूरस्थ प्रदेश कहा जाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- उत्तरवैदिक ग्रन्थ यजुर्वेद में लौहे के लिए “श्याम अयस एवं कृष्ण अयस” कहा जाता था।
- उपनिषद काल में सरयू नदी के किनारे कौशल राज्य की स्थापना हुई थीं।
- उत्तरवैदिक काल में तीन आश्रम प्रचलित थे, ब्रह्राचर्य, गृहस्थ, एवं वानप्रस्थ।
- संगीत आर्यों के मनोरंजन का प्रमुख साधन था।
- अथर्ववेद में अंग तथा मगध को दूरस्थ प्रदेश कहा गया है।
- काशी की स्थापना उत्तरवैदिक काल में हुई थीं।
- अथर्ववेद में राजा को जनता का भक्षक कहा गया है।
- उत्तरवैदिक काल में 100 ग्रामों के समूह को शतपति कहा जाता था।
- उत्तरवैदिक काल कढ़ाई का काम करने वाली स्त्रियों को ‘पेशस्करी’ कहा जाता था।
- सबसे पहले अथर्ववेद में चाँदी का उल्लेख मिलता है।
- इस काल में लाल मिर्दुभाण्ड सबसे सर्वाधिक प्रचलित था।
- मृत्यु की चर्चा सर्वप्रथम शतपथ ब्राम्हण में तथा मोक्ष की चर्चा उपनिषद में मिलती है।
- उत्तरवैदिक काल में अनाज मापने के पात्र को ‘उर्दर’ कहा जाता था।
- उत्तरवैदिक काल में सोने की बने आभूषण को ‘निष्क’ कहा जाता था।
- इस काल में ऋग्वेद की पुरोहित ‘होता’, सामवेद का ‘उद्गाता’ यजुर्वेद का ‘अर्ध्वयूं’, अथर्ववेद का ‘ब्रम्हा’ कहलाता था।