काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों ने संयंत्र की तीसरी इकाई [काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना (केएपीपी -3)] में पहली बार क्रांतिकता (Criticality) हासिल की है।
प्रमुख बिंदु:
काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र गुजरात के तापी जिले में स्थित है।इस संयंत्र की पहली दो इकाइयां कनाडा की तकनीक पर आधारित हैं, जबकि इसकी तीसरी इकाई पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है।
इस संयंत्र में पहले 220 मेगावाट के दबाव वाले भारी जल रिएक्टर- PHWR के निर्माण को 6 मई 1993 को अधिकृत किया गया था और दूसरी 220 मेगावाट की इकाई को 1 सितंबर 1995 को चालू किया गया था।
इस संयंत्र की तीसरी और चौथी इकाइयों का निर्माण वर्ष 2011 में शुरू हुआ था।
क्रांतिकता (Criticality- संयंत्र में नियंत्रित आत्मनिर्भर परमाणु विखंडन श्रृंखला की शुरुआत को संदर्भित करती है।
काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना की तीसरी इकाई (KAPP-3):
केएपीपी -3 भारतीय घरेलू नागरिक परमाणु कार्यक्रम के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
KAPP-3 स्वदेशी रूप से विकसित PHWR की सबसे बड़ी इकाई है, जिसमें भारत की पहली 700 MW बिजली इकाई है।
PHWR प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग ईंधन और भारी पानी (D2O) के रूप में शीतलक के रूप में किया जाता है।
अब तक भारत में स्वदेशी रूप से विकसित PHWR की सबसे बड़ी इकाई 540 MW थी, महाराष्ट्र में तारापुर संयंत्र में ऐसी दो इकाइयाँ स्थापित की गई हैं।
2011 में प्लांट की तीसरी यूनिट के निर्माण के बाद मार्च 2020 में ईंधन भरने की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
भारत में स्वदेशी निर्मित इस 700 मेगावाट के PHWR में ‘स्टील लाइंड इनर कंटेंटमेंट’, निष्क्रिय क्षय ऊष्मा निष्कासन प्रणाली, रोकथाम स्प्रे प्रणाली, हाइड्रोजन प्रबंधन प्रणाली आदि जैसी उन्नत सुरक्षा सुविधाएँ उपलब्ध हैं।