सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय मे कहा है कि दिव्यांग व्यक्ति भी देश में सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और इसलिये वे सार्वजनिक रोज़गार तथा शिक्षा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के समान लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं।इस निर्णय से सार्वजनिक क्षेत्र के नियोक्ताओं और कॉलेजों तथा विश्विद्यालयों को दिव्यांग व्यक्तियों को भी SC/ST उम्मीदवारों के समान छूट प्रदान करनी होगी।
याचिकाकर्त्ता ने शारीरिक/ मानसिक रूप से दिव्यांग छात्रों के लिये डिज़ाइन किये गए फाइन आर्ट डिप्लोमा कोर्स हेतु आवेदन किया था।उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कॉलेज की विवरण-पुस्तिका (Prospectus) के कुछ प्रावधानों को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें मांग की थी कि शारीरिक रूप से दिव्यांग छात्रों और मानसिक/ बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों के बीच, कुल सीटों का द्विभाजन किया जाना चाहिये।रिट याचिका के माध्यम से बौद्धिक/ मानसिक रूप से विकलांग छात्र को एप्टीट्यूड टेस्ट में छूट प्रदान करने की भी मांग की थी।
उच्च न्यायालय ने इस रिट याचिका को खारिज़ कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि द्विभाजन के पहलू पर उच्च न्यायालय का निर्णय एकदम सही है।सर्वोच्च न्यायालय ने एप्टीट्यूड टेस्ट को लेकर भी उच्च न्यायालय के निर्णय पर सहमति व्यक्त की, जिसमें उच्च न्यायालय ने एप्टीट्यूड टेस्ट में छूट देने से इनकार कर दिया था।
हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2012 के अनमोल भंडारी (नाबालिग) बनाम दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) वाद में दिल्ली उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए सिद्धांत का अनुसरण करने की बात की, जिसमें उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया था कि दिव्यांग व्यक्तियों सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और इसलिये वे अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के समान लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चूँकि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को एप्टीट्यूड टेस्ट में उत्तीर्ण होने के लिये 35 प्रतिशत अंकों की आवश्यकता होती है, इसलिये यह नियम अब दिव्यांग छात्रों के मामले में भी लागू होगा।