पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद  में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद  में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया है। जो कि बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब प्रदर्शन है। कह सकते हैं कि भारत में इस वर्ष अप्रैल, मई और जून महीने में वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य बीते वर्ष अप्रैल, मई और जून महीने में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य से 23.9 प्रतिशत कम है।

  • अर्थव्यवस्था में विकास के लगभग सभी प्रमुख संकेतक गहरे संकुचन की ओर इशारा कर रहे हैं। जहाँ एक ओर मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के दौरान कोयले के उत्पादन में 15 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया, वहीं इसी अवधि के दौरान सीमेंट के उत्पादन और स्टील के उपभोग में क्रमशः 38.3 प्रतिशत और 56.8 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया।  
  • इसी वर्ष की पहली तिमाही के दौरान महामारी का सबसे अधिक प्रभाव वाहनों की बिक्री और हवाईअड्डों पर आने वाले यात्रियों की संख्या पर देखने को मिला और इस दौरान वाहनों की बिक्री में लगभग 84.8 प्रतिशत और हवाईअड्डों पर आने वाले यात्रियों की संख्या में 94.1 प्रतिशत की कमी देखने को मिली।
  • अर्थव्यवस्था में संकुचन अनुमान से काफी अधिक है, इसलिये संपूर्ण वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) संबंधी आँकड़े भी काफी खराब रह सकते हैं, जो कि स्वतंत्रत भारत के इतिहास में भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे खराब स्थिति होगी। 
  • सकल मूल्य वर्धित (GVA) के मामले में कृषि को छोड़कर अर्थव्यवस्था के अन्य सभी क्षेत्रों की आय में गिरावट देखने को मिली।सकल मूल्य वर्धित किसी देश की अर्थव्यवस्था में सभी क्षेत्रों, यथा- प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीय क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र द्वारा किया गया कुल अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन का मौद्रिक मूल्य होता है।   
  • इस तिमाही के दौरान महामारी का सबसे अधिक प्रभाव निर्माण (50 प्रतिशत संकुचन), विनिर्माण (39 प्रतिशत संकुचन), खनन (23 प्रतिशत संकुचन) और व्यापार, होटल तथा अन्य सेवा (47 प्रतिशत संकुचन) क्षेत्रों पर देखने को मिला

जब आय में तेज़ी से गिरावट होती है तो निजी उपभोग अथवा खपत में भी गिरावट होती है, इसी प्रकार जब निजी खपत में गिरावट होती है तो निजी व्यवसाय निवेश करना बंद कर देते हैं और चूँकि ये दोनों स्वैच्छिक निर्णय हैं इसलिये आम लोगों को न तो अधिकाधिक खर्च करने के लिये मज़बूर किया जा सकता है और न ही निजी व्यवसायों को निवेश करने के लिये।ऐसी स्थिति में सरकार द्वारा किये जाने वाला निवेश (G) अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने के लिये एकमात्र साधन प्रतीत होता है। इस प्रकार मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के लिये सरकार को अधिक-से-अधिक खर्च करना होगा। इस कार्य के लिये सरकार या तो सड़कों और पुलों के निर्माण, वेतन भुगतान और प्रत्यक्ष मौद्रिक भुगतान आदि का प्रयोग कर सकती है।पर यहाँ समस्या यह है कि सरकार के पास खर्च करने के लिये पैसे ही नहीं हैं, COVID-19 महामारी ने पहले ही सरकार के राजस्व को पूरा समाप्त कर दिया है और सरकार को कर के माध्यम से भी कुछ खास राजस्व प्राप्त नहीं हो रहा है।ऐसे में सरकारों को अपने राजस्व को पूरा करने तथा महामारी के प्रभाव से निपटने के लिये नए और अभिनव उपायों की आवश्यकता होगी।

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