पृथ्वी की आंतरिक्ष संरचना

पृथ्वी की आंतरिक्ष संरचना

पृथ्वी की आंतरिक भाग की वास्तविक स्थिति तथा उसकी बनावट के विषय में सही ज्ञान प्राप्त करना असंभव नहीं तो कठिन कार्य अवश्य है, क्योंकि पृथ्वी की आतंरिक भाग मानव के लिए दृश्य नहीं है। पृथ्वी पर सबसे  आसानी से उपलब्ध ठोस पदार्थ धरातलीय अथवा वे चट्टानें है, जो हम खनन क्षेत्र से प्राप्त करते है। दक्षिण  अफ्रीका की सोने की खाने 3 से 4 किमी तक गहरी है। इससे अधिक गहराई में जा पाना असंभव है, क्योंकि उतनी गहराई पर तापमान बहुत अधिक होता है। आज तक सबसे गहरा प्रवेधन अर्कटिक महासागर के कोल क्षेत्र में 12 किमी की गहराई तक ही किया गया है। 

► पृथ्वी की आंतरिक्ष संरचना की जानकारी देने वालों स्त्रोंतों को दो वर्गों में बाँटा गया है :-

अप्राकृतिक स्त्रोत

अप्राकृतिक स्त्रोतों में ताप, दबाव व घनत्व शामिल है। 

पृथ्वी में भू-गर्भ की ओर बढ़ने पर आमतौर पर तापमान 1 डिग्री सेल्सियस प्रति 32 मीटर की दर से बढ़ता है, लेकिन तापमान बढ़ने की यह दर एक सीमा तक सीमित होती है।

दबाव : पृथ्वी के आंतरिक भाग में एक वर्ग सेमी क्षेत्रफल पर परने वाला भार दबाव है। 50 किमी की गहराई तक दबाव स्थल की अपेक्षा 13,000 गुना अधिक है।

घनत्व : भूपटल का अधिकांश भाग महाद्वीपों का बना है, जिसकी रचना अवसादी चट्टानों से हुई है। इसका औसत घनत्व 2.7 है, जबकि न्यूटन की गुरुत्वाकर्षण सिध्दांत के अनुसार सम्पूर्ण पृथ्वी का घनत्व 5.5 है। अर्थात पृथ्वी के आतंरिक भागों का घनत्व अधिक होता है।

प्राकृतिक स्रोत

प्राकृतिक स्रोतों में गुरुत्वाकर्षण, ज्वालामुखी और भूकंप से संबंधित गतिविधियाँ शामिल हैं। पृथ्वी की सतह पर विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान नहीं है। यह (गुरुत्व) ध्रुवों पर अधिक और भूमध्य रेखा पर कम है। पदार्थ के द्रव्यमान के अनुसार गुरुत्वाकर्षण का मान भी भिन्न-भिन्न होता है। पृथ्वी के भीतर पदार्थों के आसमान वितरण इस भिन्नता को प्रभावित करता है। ज्वालामुखी विस्फोट पृथ्वी की आंतरिक संरचना की प्रत्यक्ष जानकारी का एक और स्रोत है। जब भी ज्वालामुखी से लावा पृथ्वी की सतह पर फूटता है, यह प्रयोगशाला में खोज के लिए महत्वपूर्ण होता है। भूकंपीय तरंगें भी पृथ्वी की आंतरिक जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

भूकम्पीय तरंगो से प्राप्त सूचना के आधार पर पृथ्वी की आतंरिक संरचना को तीन भागों में विभक्त किया गया है :-

भू -पर्पटी

यह ठोस पृथ्वी का सबसे बाहरी हिस्सा है। यह बहुत भंगुर है, जल्दी से टूटने की प्रवृत्ति इसमे होती है। भू -पर्पटी की मोटाई महाद्वीपों और महासागरों मे अलग-अलग है। महासागरों में क्रस्ट की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है। महासागरों में इसकी औसत मोटाई 5 किमी है, जबकि महाद्वीपों में औसत मोटाई 30 किमी है। महाद्वीपीय क्रस्ट भारी चट्टानों से बना होता है और इसका घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेमी होता है। चट्टानी बेसाल्ट महासागरों के नीचे बनता है और इसका घनत्व 2.7 ग्राम प्रति सेमी है।

मेन्टल

जमीन में पर्पटी के नीचे के भाग को मैंटल कहा जाता है। यह 2900 किमी की गहराई तक पाया जाता है। मेंटल के ऊपरी हिस्से को दुर्बलमंडल कहा जाता है, जिसका 400 किमी तक विस्तार होने का अनुमान लगाया गया है। ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान जमीन तक पहुंचने वाले लावा का मुख्य स्रोत यह दुर्बलमंडल है। मेंटल का घनत्व भू-पर्पटी की चट्टानों से अधिक है। यह पृथ्वी के आयतन का 83% और इसके द्रव्यमान का 67% भाग है।

क्रोड

कोर और मेंटल की सीमा 2900 किमी की गहराई पर है। बाहरी कोर तरल अवस्था में है, जबकि आंतरिक कोर ठोस अवस्था में है। मेंटल और कोर की सीमा पर, चट्टानों का घनत्व 5 ग्राम प्रति घन सेमी और केंद्र में 6300 किमी की गहराई तक, घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी है।

बाहरी कोर तरल अवस्था में होता है क्योंकि तापमान यहाँ दबाव से अधिक होता है, जबकि नीचे बढ़ते क्रम में दबाव तापमान से अधिक होता है, इसलिए आंतरिक कोर ठोस अवस्था में होता है।

भूकम्पीय लहरों के आधार पर ही पृथ्वी की आतंरिक संरचना को निम्नलिखित तीन भागो में बाँटा गया है :-

1 ) स्थल मण्डल :- इसकी गहराई 100 किमी है। इसमें ग्रेनाइट और सिलिका का वर्चस्व है और एल्यूमीनियम मुख्य रूप से पाए जाते हैं। इसका घनत्व 3.5 है।

2 ) पाईरोस्फीयर :- ये मिश्रित मंडल हैं। इसकी गहराई 1000 से 2800 किमी तक है और यह बेसाल्ट से बनी है। इसका घनत्व 5.6 है।

3 ) बैरोस्फीयर :- इसकी गहराई 2800 किमी नीचे केंद्र तक है, और घनत्व 8 से 11. है। यह लोहे और निकल से बना है।

पृथ्वी का रासायनिक संगठन एवं विभिन्न आवरण

भूवैज्ञानिक स्वेस ने सबसे पहले इस संबंध में अपनी राय व्यक्त की कि क्रस्ट का ऊपरी हिस्सा असवादी चट्टानों से बना है। असवादी चट्टानों की गहराई और घनत्व बहुत कम है। इसमें ऊपर की तरफ हल्का सिलिकेट और सबसे नीचे भारी सिलिकेट है। इस परत के नीचे स्वेस ने तीन परतों पर विचार किया है, जो इस प्रकार हैं: –

1) सियाल :- सियाल की परत असवादी शैलों के नीचे पाई जाती है, जो सिलिका और एल्यूमीनियम से बनी होती है। इस परत की औसत गहराई 50 से 300 किमी है और घनत्व 2.75 से 2.90 है। यह परत ग्रेफाइट चट्टानों से बनी है, जिसमें अम्लीय सामग्री की प्रधानता है। सियाल में पोटेशियम, सोडियम और एल्यूमीनियम सिलिकेट्स अधिक होते हैं। महाद्वीप सियाल से बनते हैं। यह अपने से नीचे वाली परत (सीमा) से हल्की होने के कारण इस पर तैर रही है।

2) सीमा :- यह सियाल के नीचे स्थित है, और सिलिका और मैग्नीशियम से समृद्ध है। इस परत का घनत्व 2.90 से 4.75 है। इसकी गहराई 1000 से 2000 किमी तक है। बेसाल्ट चट्टान से बनने वाली इस परत में क्षारीय अंश का प्रभुत्व है। ज्वालामुखी विस्फोट के कारण सीमा के शैले लावा के रूप में पृथ्वी पर आ जाती है। यहां मैग्नीशियम, कैल्शियम और आयरन सिलिकेट्स पाए जाते हैं।

3) निफे :- सीमा के नीचे तीसरी और आखिरी परत है, इसमें निकल और लोहे की प्रधानता है। यह परत पृथ्वी के केंद्र तक फैली हुई है, और 11 से 13 की घनत्व है। पृथ्वी के आंतरिक कोर में लोहे की उपस्थिति पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति को साबित करती है।

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