बांग्लादेश में तख्तापलट, क्या है कोटा विवाद जाने विस्तृत रूप में

बांग्लादेश के कोटा विवाद के संदर्भ में शेख हसीना का इस्तीफा एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। इस विवाद ने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आरक्षण व्यवस्था को लेकर व्यापक विरोध और राजनीतिक उथल-पुथल को जन्म दिया। आइए इस मामले को विस्तार से समझते हैं:

पृष्ठभूमि

बांग्लादेश में आरक्षण व्यवस्था की शुरुआत 1972 में हुई थी, जिसका उद्देश्य विभिन्न वंचित वर्गों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता देना था। यह आरक्षण मुख्य रूप से स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों, महिलाओं, आदिवासी समुदायों और पिछड़े वर्गों के लिए था। यह व्यवस्था मुख्यतः निम्नलिखित कोटा पर आधारित थी:

  • मुक्ति योद्धा (स्वतंत्रता सेनानी): 30% कोटा।
  • महिलाएं: 10% कोटा।
  • आदिवासी समुदाय: 5% कोटा।
  • पिछड़ा और वंचित वर्ग: 10% कोटा।

अन्य: अन्य आरक्षित श्रेणियां जिनमें विकलांगता भी शामिल थी।

 

कोटा विवाद का उद्भव

2018 की शुरुआत में, ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने इस व्यवस्था के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू किया। उनका कहना था कि यह व्यवस्था असमानता और अन्याय को बढ़ावा दे रही है और मेधावी छात्रों को नजरअंदाज कर रही है। विरोधियों ने इस बात पर जोर दिया कि:

मेधावी छात्रों का अधिकार: कोटा व्यवस्था के कारण कई मेधावी छात्रों को प्रवेश और नौकरियों में अवसर नहीं मिल पा रहे थे।

आरक्षण की सीमित अवधि: उनका प्रस्ताव था कि यह व्यवस्था एक समय के बाद खत्म हो जाए, जब इसका उद्देश्य पूरा हो जाए।

मेरिट-आधारित प्रणाली: आरक्षण के बजाय, एक मेरिट-आधारित प्रणाली की मांग थी जो सभी के लिए समान अवसर प्रदान करे।

 

विरोध प्रदर्शन

ढाका विश्वविद्यालय का केंद्र बिंदु: ढाका विश्वविद्यालय इस विरोध प्रदर्शन का मुख्य केंद्र बना, जहां हजारों छात्र सड़कों पर उतर आए।

देशभर में फैलाव: यह प्रदर्शन देश के अन्य शिक्षा संस्थानों में भी फैल गया, जहां छात्रों ने शांतिपूर्ण और अशांतिपूर्ण दोनों रूपों में प्रदर्शन किया।

पुलिस की कार्रवाई: कई स्थानों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प भी हुई। पुलिस ने आंसू गैस और लाठीचार्ज का इस्तेमाल किया जिससे कई छात्र घायल हुए।

योग्यता आधारित प्रणाली की मांग: छात्रों ने आरक्षण की बजाय एक मेरिट-आधारित प्रणाली की मांग की जो सभी के लिए समान अवसर प्रदान करे।

आरक्षण की अवधि: उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि आरक्षण को एक सीमित अवधि के लिए लागू किया जाए और समय के साथ समाप्त कर दिया जाए।

 

शेख हसीना की प्रतिक्रिया

शुरुआत में, शेख हसीना ने आरक्षण व्यवस्था का समर्थन किया, लेकिन जब विरोध प्रदर्शन तेज हो गए, तो उन्होंने इसकी समीक्षा का वचन दिया। अंततः, 11 अप्रैल 2018 को, शेख हसीना ने घोषणा की कि सरकार सभी प्रकार की आरक्षण व्यवस्था को समाप्त कर देगी।

 

इस्तीफा की मांग

विरोध प्रदर्शनों के दौरान और बाद में:

छात्रों और युवाओं का असंतोष: विरोध प्रदर्शन में शामिल छात्रों और युवाओं का कहना था कि शेख हसीना की सरकार उनके भविष्य के प्रति संवेदनशील नहीं है।

राजनीतिक दलों का दबाव: कुछ विपक्षी दलों और समूहों ने भी इस मुद्दे का राजनीतिकरण करते हुए शेख हसीना के इस्तीफे की मांग की।

 

शेख हसीना का रुख

शेख हसीना ने इस्तीफा नहीं दिया और अपने पद पर बनी रहीं। उन्होंने कहा कि सरकार ने छात्रों की मांगों को सुना और आरक्षण व्यवस्था को समाप्त कर दिया। उन्होंने विरोध के दौरान हुए हिंसा और अशांति के लिए भी कड़ी कार्रवाई की।

 

परिणाम और प्रभाव

शिक्षा और रोजगार में परिवर्तन: इस घोषणा के बाद शिक्षा और रोजगार के क्षेत्रों में कोटा व्यवस्था समाप्त हुई, लेकिन इसके क्रियान्वयन में समय लगा। कुछ समुदायों ने इस पर अपनी नाराजगी व्यक्त की, क्योंकि उनका मानना था कि आरक्षण उनके लिए जरूरी था।

राजनीतिक प्रभाव: विरोधी दल और कुछ समुदाय इस फैसले से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने इस मुद्दे पर सरकार को निरंतर निशाना बनाया।

शेख हसीना का इस्तीफा: कुछ विरोधी दल और प्रदर्शनों में लोगों ने शेख हसीना के इस्तीफे की मांग की, यह कहकर कि उनकी सरकार युवाओं के हितों को सुरक्षित नहीं रख पाई। लेकिन शेख हसीना ने इस्तीफा नहीं दिया और अपने पद पर बनी रहीं।

इस पूरे मुद्दे ने बांग्लादेश के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे को गहरा प्रभावित किया और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भी कई प्रश्न खड़े किए।

 

2024 का राजनीतिक संकट

विरोध प्रदर्शनों की नई लहर: 2024 में, कोटा व्यवस्था के खिलाफ विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू हो गए। इस बार यह विरोध व्यापक और अधिक हिंसक हो गया।

सरकार के खिलाफ असंतोष: छात्रों के साथ ही अन्य वर्गों ने भी शेख हसीना सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। इन प्रदर्शनों ने एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया।

हिंसा और मृत्युदर: प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क उठी, जिसमें 300 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें 14 पुलिस अधिकारी भी शामिल थे।

शेख हसीना का इस्तीफा

राजनीतिक दबाव: बढ़ते विरोध और हिंसा के बीच, शेख हसीना पर इस्तीफे का दबाव बढ़ता गया।

इस्तीफे की घोषणा: अंततः, 5 अगस्त 2024 को, शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

भारत में शरण: इस्तीफे के बाद, शेख हसीना और उनका परिवार सैन्य हेलीकॉप्टर के जरिए बांग्लादेश से रवाना होकर भारत पहुंचे। उन्हें भारत सरकार ने सुरक्षा प्रदान की और उनके लंदन जाने की संभावना है।

अंतरिम सरकार की योजना: सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-ज़मान ने हसीना के इस्तीफे की पुष्टि की और एक अंतरिम सरकार के गठन की योजना की घोषणा की।

निष्कर्ष

कोटा विवाद और शेख हसीना का इस्तीफा बांग्लादेश की राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इस घटना ने यह दिखाया कि किस प्रकार एक नीतिगत निर्णय व्यापक जनाक्रोश और राजनीतिक असंतोष का कारण बन सकता है, और किसी भी सरकार को इस तरह के मुद्दों से निपटने में कितनी समझदारी और संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।​

 

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