भूकंपों को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन क्या उच्च तीव्रता के भूकंपों के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए कोई उपाय है? शायद हां, कम से कम पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) कुछ ऐसा ही सोचता है। एक महत्वकांक्षी परियोजना के अंतर्गत मंत्रालय भूकंप के खतरे से ग्रस्त जोन-4 और जोन-5 में शामिल क्षेत्रों की माइक्रो-मैपिंग कर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप रोधी शहरों के विकास और अत्यधिक आबादी वाले क्षेत्रों में इमारतों की सुरक्षा एवं जान-माल के नुकसान को कम करने में इस तरह की मैपिंग उपयोगी हो सकती है।
मंत्रालय की योजना के अनुसार, भूकंप के प्रति संवेदनशील शहरों में भूकंप के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के उद्देश्य से इन शहरों की माइक्रो-मैपिंग चरणबद्ध तरीके से की जा रही है। अब तकसिक्किम के साथ-साथ दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी, जबलपुर, अहमदाबाद, गांधीधाम, बंगलौर और देहरादून समेत आठ शहरों की माइक्रो-मैपिंग की जा चुकी है। चेन्नई, कोयम्बटूर, भुवनेश्वर और मंगलौर समेत चार अन्य शहरों में भी इस परियोजना पर काम चल रहा है। इसके अलावा, आठ अन्य शहरों में भी भूकंपीय खतरे को ध्यान में रखते हुए माइक्रो-मैपिंग कराने की प्रक्रिया शुरू की गई है। इन शहरों में आगरा, अमृतसर, पटना, धनबाद, कानपुर, वाराणसी, मेरठ और लखनऊ शामिल हैं।