स्वास्थ्यकर्मियों की रक्षा के लिए अध्यादेश को मंजूरी

केंद्रीय कैबिनेट ने 22 अप्रैल 2020 को हुई अपनी बैठक में महामारी के दौरान हिंसा के खिलाफ स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और संपत्ति की सुरक्षा, जिसमें उनका रहना/काम करने का परिसर भी शामिल है, के लिए महामारी रोग अधिनियम 1897 (Epidemic Diseases Act, 1897) में संशोधन के लिए एक अध्यादेश (Ordinance) पारित करने को मंजूरी दी। राष्ट्रपति ने अध्यादेश पर अपनी सहमति भी दे दी है।

उद्देश्य:

अध्यादेश में ऐसी हिंसा की घटनाओं को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध घोषित करने के साथ ही स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को चोट लगने या नुकसान या संपत्ति को नुकसान, जिसमें महामारी के संबंध में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों का सीधा हित जुड़ा हो सकता है, के लिए जुर्माने का प्रावधान किया गया है।वर्तमान अध्यादेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मौजूदा महामारी के दौरान किसी भी स्थिति में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा और संपत्ति को लेकर जीरो टॉलरेंस होगा।

मुख्य प्रावधान

•अध्यादेश में हिंसा को उत्पीड़न, शारीरिक चोट और संपत्ति को नुकसान को शामिल करते हुए परिभाषित किया गया है। हेल्थकेयर सेवा कर्मियों, जिसमें पब्लिक और क्लीनिकल हेल्थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स जैसे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल वर्कर और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता; ऐक्ट के तहत बीमारी के प्रकोप या प्रसार को रोकने के लिए काम करने वाला अधिकार प्राप्त कोई अन्य व्यक्ति; और आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा राज्य सरकार द्वारा घोषित ऐसे व्यक्ति शामिल हैं।

•दंडात्मक प्रावधानों को संपत्ति के नुकसान के मामलों में लागू किया जा सकता है जिसमें क्लीनिक, क्वारंटीन और मरीजों के आइसोलेशन के लिए निर्धारित केंद्र, मोबाइल मेडिकल यूनिटें और कोई अन्य संपत्ति, जिसका महामारी के संबंध में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों से सीधा संबंध हो।

•यह संशोधन हिंसा को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाता है। हिंसा के ऐसे कृत्यों को करने या उसके लिए उकसाने पर तीन महीने से लेकर 5 साल तक की जेल और 50 हजार रुपये से लेकर 2 लाख तक के जुर्माने की सजा हो सकती है। गंभीर चोट पहुंचाने के मामले में कारावास की अवधि 6 महीने से लेकर 7 साल तक होगी और एक लाख से 5 लाख रुपये तक जुर्माना देना होगा। इसके अलावा, पीड़ित की संपत्ति को हुए नुकसान पर अपराधी को बाजार मूल्य का दोगुना हर्जाना भी देना होगा।

•30 दिनों के भीतर इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी द्वारा अपराधों की जांच की जाएगी और सुनवाई एक साल में पूरी होनी चाहिए जबतक कि कोर्ट द्वारा लिखित रूप में कारण बताते हुए इसे आगे न बढ़ाया जाए।

पृष्ठभूमि

वर्तमान में कोविड-19 महामारी के दौरान, सबसे महत्वपूर्ण सर्विस प्रोवाइडर्स यानी स्वास्थ्य सेवाओं के सदस्यों के साथ कई ऐसी घटनाएं घटीं जिसमें उन्हें निशाना बनाया गया और शरारती तत्वों द्वारा हमले भी हुए। ऐसा कर उन्हें उनके कर्तव्यों को पूरा करने से रोका गया। चिकित्सा समुदाय के सदस्य लगातार चौबीसों घंटे लोगों की जान बचाने के लिए काम कर रहे हैं फिर भी दुर्भाग्य से वे सबसे ज्यादा आसान शिकार बन गए क्योंकि कुछ लोग उन्हें वायरस के वाहक के तौर पर मानने लगे। इससे उन पर दोषारोपण के साथ उनका बहिष्कार करने के मामले सामने आए और कभी-कभी तो बेवजह हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं भी घटीं। ऐसे हालात चिकित्सा समुदाय को कर्तव्यों को पूरा करते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ देने और मनोबल बनाए रखने में बाधा बनते हैं, जो इस राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट की घड़ी में बेहद जरूरी है। स्वास्थ्य सेवा कर्मी बिना किसी भेदभाव के अपना काम कर रहे हैं तो समाज का सहयोग और समर्थन मिलना एक मूलभूत जरूरत है, जिससे वे पूरे विश्वास के साथ अपने कर्तव्यों को निभा सकें। अतीत में कई राज्यों ने डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष कानून बनाए हैं। हालांकि कोविड-19 के प्रकोप ने एक अलग स्थिति पैदा कर दी है, जहां सभी मोर्चों पर बीमारी के प्रसार को रोकने के काम में जुटे स्वास्थ्य कर्मियों का श्मशान घाट तक में उत्पीड़न हो रहा है। राज्य के मौजूदा कानूनों की सीमा और प्रभाव इतना व्यापक नहीं है। वे आमतौर पर घर और कार्यस्थल पर उत्पीड़न को इसमें शामिल नहीं करते और उनका ज्यादा फोकस केवल शारीरिक हिंसा पर रहता है। इन कानूनों में निहित दंडात्मक प्रावधान शरारतपूर्ण दुर्व्यवहार को रोकने के लिए सख्त नहीं है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Join Our Telegram