केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 9 राज्यों (मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, नगालैंड, त्रिपुरा, ओडिशा, गुजरात, उत्तराखंड व महाराष्ट्र) के 22 बाँस क्लस्टर्स की वर्चुअल शुरूआत की। साथ ही राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM) के लोगो का विमोचन किया।भारत में प्रतिवर्ष लगभग 14.6 मिलियन टन बाँस का उत्पादन होता है और लगभग 70,000 किसान बाँस के रोपण के कार्य में सलंग्न हैं। देश में बाँस की लगभग 136 किस्में पाई जाती हैं।भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट-2019 के अनुसार भारत में बाँस उत्पादन के अंतर्गत 16 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र अनुमानित है।
बाँस उद्योग
- बाँस उद्योग से आशय उन सभी फर्मों से है जो उच्च मूल्य वाले उत्पादों के माध्यम से बाँस के मूल्य संवर्द्धन में संलग्न हैं।
- देश में तीव्र सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन से कच्चे माल के रूप में बाँस का महत्त्व न केवल कुटीर उद्योगों में बढ़ा है, बल्कि बड़े उद्योगों में भी इसके महत्त्व में वृद्धि हुई है।
- बाँस पर आधारित करीब 25,000 उद्योग 2 करोड़ लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान कर रहे हैं जबकि 20 लाख लोग बाँस पर आधारित दस्तकारी में संलग्न हैं।
- बाँस के पेड़ के आकार और मज़बूती के कारण भवन और आधारभूत ढाँचा निर्माण सामग्री के रूप में इसके उपयोग की व्यापक संभावनाएँ हैं। बाँस की दस्तकारी और बाँस पर आधारित संसाधनों का उपयोग करने वाले उद्योगों में लुगदी और कागज उद्योग अग्रणी हैं।
- वृक्ष की परिभाषा से बाँस को हटाने के लिये भारतीय वन अधिनियम, 1927 में वर्ष 2017 में संशोधन किया गया, जिससे किसानों को बाँस व बाँस आधारित उत्पादों की सुगम आवाजाही में सहायता मिली है।
- खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने अगले 3-4 वर्षों में बाँस की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बाँस वृक्षारोपण अभियान भी शुरू किया है।
राष्ट्रीय बाँस मिशन
- अक्तूबर 2006 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM) को राष्ट्रीय बाँस तकनीकी और व्यापार विकास रिपोर्ट, 2003 के आधार पर लॉन्च किया था।
- राष्ट्र्रीय बाँस मिशन का मुख्य उद्देश्य देश में बाँस उद्योग के विकास से संबंधित मुद्दों को संबोधित करना, बाँस उद्योग को नई गति एवं दिशा प्रदान करना तथा बाँस उत्पादन में भारत की संभावनाओं को साकार करना है।
- बहु-अनुशासनात्मक और बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ यह मिशन संयुक्त वन प्रबंधन समितियों (JFMCs) या ग्राम विकास समितियों (VDCs) के माध्यम से योजनाबद्ध हस्तक्षेप, अनुसंधान और विकास, वन तथा गैर-वन भूमि पर वृक्षारोपण पर बल देता है।