ख़बरों में क्यों :
बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) राज्य के 22 जिलों में प्राकृतिक खेती करेगा। इसके साथ-साथ किसानों को भी इसके लिये तैयार किया जायेगा।
प्रमुख बिंदु :
- प्राकृतिक खेती बीएयू के सभी 22 कृषि विज्ञान केन्द्रों में एक-एक एकड़ में शुरू की जायेगी।
- इसके लिये प्राकृतिक खेती के विशेषज्ञ और तमिलनाडु निवासी डॉ. केईएन राघवन को बीएयू ने बुलाया है। बीएयू में इसके लिये वैज्ञानिकों को तीन दिन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
- प्रशिक्षण में प्राकृतिक खेती के लिये जीवामृत, अमृतजल, धन जीवामृत बनाने की विधि बताई गई। ये सभी चीजें गौ आधारित उत्पाद जैसे गोबर, गोमूत्र, दही, केला, गुड़ का उपयोग कर इसे बनाया जाता है।
प्राकृतिक खेती और आर्गेनिक खेती में अंतर
- प्राकृतिक खेती के विशेषज्ञ डॉ. केईएन राघवन ने बताया कि प्रकृति खेती प्राकृतिक वस्तुओं से होती है। वहीं आर्गेनिक फार्मिक प्राकृतिक वस्तुओं को कृत्रिम तरीके से बनाकर तैयार करते हैं।
- प्राकृतिक खेती करने से मृदा के स्वास्थ्य में आ रही उत्तरोतर ह्रास को विराम दिया जा सकता है। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जन्तुओं का सन्तुलन बना रहता हैं।
- प्राकृतिक खेती में उपयोग में लाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु हमारे घर की होती है, जबकि आर्गेनिक में उपयोग में लाई जानी वाली बस्तुओं को कम्पनी ने बनाना शुरू कर दिया है।