ख़बरों में क्यों :
बिहार को 18 साल बाद बड़े राजकोषीय घाटे का सामना करना पड़ा है। 31 मार्च 2021 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष के दौरान राज्य में 29 हजार 827 करोड़ का राजकोषीय घाटा दर्ज किया गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 15,103 करोड़ रुपये ज्यादा है।
प्रमुख बिंदु :
- राज्य को 2004-05 के बाद दूसरी बार 11,325 करोड़ से ज्यादा राजस्व घाटे का सामना करना पड़ा है।
- भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का राज्य के वित्त पर लेखा प्रतिवेदन पेश किया गया। यह रिपोर्ट 31 मार्च 2021 को खत्म हुए वित्त वर्ष की है। रिपोर्ट के अनुसार टैक्स में बढ़ोतरी के कारण वित्तीय वर्ष 2020-21 में पिछले साल की तुलना में राजस्व प्राप्तियों में 3936 करोड़ (3.17 प्रतिशत) की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
- वर्ष के अंत में बकाया लोक ऋण में पिछले वर्ष की तुलना में 29,035 करोड़ (19.59 प्रतिशत) की वृद्धि हुई।
- राज्य की देनदारियां साल दर साल बढ़ रही हैं और वर्ष 2020-21 के दौरान 53.92 प्रतिशत से अधिक उधार का उपयोग इसके पुनर्भुगतान के लिए किया गया, जिससे राज्य में परिसंपत्तियों का निर्माण प्रभावित हुआ।
- रिपोर्ट के अनुसार बिहार सरकार ने न तो 12वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार गारंटी मोचन निधि बनायी है और न ही गारंटियों की सीमा निर्धारण के लिए कोई नियम बनाया। वर्ष 2021-21 के दौरान उधर ली गयी राशि का 82.94 प्रतिशत मौजूदा देनदारियों के निर्वहन में उपयोग किया गया।
- रिपोर्ट के अनुसार 13 विभागों के तहत कुल व्यय 25 हजार 151.25 करोड़ में से 14 हजार 838.40 करोड़ (59 प्रतिशत) का खर्च अंतिम तिमाही में, जबकि 9,837.20 करोड़ (39.11 प्रतिशत) खर्च मार्च 2021 में किया गया। 31 मार्च 2021 तक 92 हजार 687.31 करोड़ के (3,886 यूसी) उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित थे।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक संख्या में उपयोगिता प्रमाण पत्र का लंबित रहना, निधि के दुरुपयोग एवं धोखाधड़ी के जोखिम को बढ़ाता है। मार्च 2021 तक 252 व्यक्तिगत जमा खाते में 3,811.33 करोड़ की राशि थी।