भावार्थ : जिस देश में शिक्षित नारियों का प्रतिशत जितना अधिक है वह देश उतना ही विकसित है । अतएव बालिकाओं को शिक्षित करना उतना ही जरूरी है जितना की बालकों को ।
मानव सभ्यता का रथ पुरुष और नारी – इन दो पहियों पर चलता है । दोनो पहियों में से एक में भी विकृति आ जाने पर रथ की गति अवरुद्ध हो जाएगी । इसीलिए हमारे प्राचीन समाज में परुसह और नारी-दोनों को सामान महत्त्व दिया गया है । वैदिक युक में नारियां समाज में पूज्य थी । मनुस्मृति में कहा गया है-
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र देवता : ।"
(जहां नारियां पूजी जाती है वहां देवताओं का वस् होता है )
नारी के इस महत्त्व के चलते ही प्राचीन भारत में नारी-शिक्षा का काफी प्रचार था । इसका प्रमाण है की वेद की ऋचाओं का ज्ञान भी नारियों में था । कुछ महत्त्वपूर्ण नारियां सम्पूर्ण नारी समाज के लिए दृष्टांत स्वरूप है । ऐसी नारियों में मैत्रेयी, गार्गी, अनुसूया, सावित्री आदि उल्लेखनीय है । मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने तो विश्वविजयी शंकराचार्य को भी शास्त्रार्थ में पराजित किया था । इसीलिए महानिर्वाणतंत्र में कहा गया है –
'कन्या नित्य पासनीया शिक्षानी याति यत्नतः:'
(अर्थात कन्याओं का भी लालन-पालन और शिक्षा बहुत ध्यानपूर्वक होना चाहिए)
लेकिन कालक्रम से हमारी संस्कृति के इस महत्त्वपूर्ण अंग पर कुठाराघात किया गया । असंगठित होने के चलते हम पर बार-बार विदेशी आक्रमण होने लगे । फलतः जान-मॉल और इज्जत सभी खतरे में पद गए । इज्जत के दर से कन्याओं को घर में बंद रखने पर हम विवश हो गए । बाल-विवाह जैसी कुप्रथा का जन्म हुआ । नारी-शिक्षा तो प्रायः लुप्त हो ही गयी । धीरे-धीरे समाज में यह धारणा बन गयी की नारी सार्थकता केवल बच्चों को जन्म देने और घर-गृहस्थी संभालने तक ही सीमित है । नारी को लोग सिर्फ भोग-विलास की वास्तु समझने लगे । नारी पुरुषों के लिए महज उपभोक्ता सामग्री हो गयी । सीता और सावित्री के देश में नारियां पूजित होने की बजाय अपमानित होने लगीं । जिस घर में बची पैदा होती है उस घर में मातम छा जाता है । इस प्रवृति का कुफल यह हुआ की नारी पुरुषों की बराबरी में न आकर पिछड़े रह गयीं । हमारे देश की प्रगति एकांगी हो गयी । लोग यह भूल गए की जिन हाथों में चूड़ियाँ खनकती हैं, उन्हीं हाथों में तलवार भी चमक उठती है । रजिया बेगम, झांसी की रानी आदि वीरांगनाएं इसकी ज्वलंत उदाहरण हैं।
वर्तमान समय में नारी का महत्त्व समझा जा रहा है । आज जीवन के हर क्षेत्र में नारियां उत्कृष्ट कार्य कर रही है । विज्ञान हो या राजनीति या समाज सेवा, हरेक क्षेत्र में आज नारियां बराबरी में है । मेडम क्यूरी के साथ कल्पना चावला को क्या कभी भुलाया जा सकता है ? इंदिरा गांधी, श्रीमती भंडारनायके, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी आदि महिलाओं को भारत के लोग क्या कभी भूल सकते हैं ? समाज सेवा में मदर टेरेसा या मार्ग्रेड थैचर, क्या किसी पुरुष से काम प्रभावशाली रही है? महात्मा गांधी ने कहा है – ‘जब तक भारत की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा-से-कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम नहीं करेगी, तब तक भारत का सर्वागीण विकास संभव नहीं है।’ वर्तमान में सरकार की ओर से नारी-शिक्षा पर बल दिया जा रहा है । लड़कियों की शिक्षा के लिए अलग से बालिका विद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना की गयी है । बाल-विवाह एवं दहेज़-प्रथा पर कानूनी प्रहार किया जा रहा है । किन्तु सरकार का भी प्रयास घोर तम में (अँधेरे में) जुगनू का प्रकाश भर है । सरकार को इस दिशा में और भी ठोस और द्रुत कदम उठाने चाहिए । सरकार का जो भी प्रयास हो लेकिन आज आवश्यकता इस बात की है की नारी के संबंध में सामाजिक परिमाणों को बदला जाए । ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो’ या ‘नारी नरकस्य द्वाराम’ – दोनों भी मामले में पुरुषों से पीछे नहीं है । अब यह सर्वमान्य सत्य हो चुका है की किसी देश का सर्वांगीण विकास तभी होगा जब देश में स्त्रियां सुरक्षित रहेंगी ।