भारत में महामारी के प्रसार को प्रभावित करने वाले ‘डबल म्यूटेंट’ वायरस को वैज्ञानिक रूप से B.1.617 के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
डबल म्यूटेंट (B.1.617):
इससे पहले ‘जीनोमिक्स पर भारतीय SARS-CoV-2 कंसोर्टियम (INSACOG)’ द्वारा वायरस के नमूनों के एक खंड की जीनोम अनुक्रमण प्रक्रिया से दो उत्परिवर्तनों, E484Q और L452R की उपस्थिति का पता चला। ये उत्परिवर्तन व्यक्तिगत रूप से कई देशों में पाए गए हैं, भारत में पहली बार इन दोनों उत्परिवर्तन की उपस्थिति कोरोनोवायरस जीनोम में पाई गई है।
हालाँकि इसे अभी तक ‘वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न ’के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।केवल तीन वैश्विक ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ की पहचान की गई है: यू.के. (B.1.1.7), दक्षिण अफ्रीकी (B.1.351) और ब्राज़ील (P.1)।
B.1.617 उत्परिवर्तन की विशेषता वाले लगभग 70% जीन अनुक्रम भारत से संबंधित हैं। इसके बाद यूनाइटेड किंगडम (23%), सिंगापुर (2%) और ऑस्ट्रेलिया (1%) हैं।
उत्परिवर्तन/ MUTATION – एक जीवित जीव के आनुवंशिक पदार्थ (जीनोम) में एक परिवर्तन जो कम या अधिक रूप से स्थायी होता है और जिसे कोशिका के प्रतिरूपों में प्रेषित किया जा सकता है।
म्यूटेंटस से जुड़े मुद्दे:
यह वायरस को और अधिक संक्रामक होने के साथ-साथ एंटीबॉडी भी बनने में सक्षम बनाता है।
एक अन्य मुद्दा टीके की प्रभावकारिता में कमी से भी जुड़ा है। अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों ने विशेष रूप से फाइज़र, मॉडर्ना और नोवावैक्स द्वारा कुछ वैरिएंट्स में टीकों की कम प्रभावकारिता को दिखाया है।
टी-कोशिकाएँ
एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका जो प्रतिरक्षा प्रणाली के लिये महत्त्वपूर्ण है और अनुकूली प्रतिरक्षा के लिये अत्यंत आवश्यक है।
टी-कोशिकाएँ सैनिकों की तरह व्यवहार करती हैं जो लक्षित हमलावर को खोजकर नष्ट कर देती हैं।
जीनोमिक्स पर भारतीय SARS-CoV-2 कंसोर्टियम
INSACOG जीनोमिक विविधता की निगरानी के लिये एक बहु-प्रयोगशाला, बहु-एजेंसी और एक अखिल भारतीय नेटवर्क है।यह समझने में मदद करता है कि वायरस कैसे फैलता और विकसित होता है।