धातु एवं अधातु – Metals and non-metals
पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी पदार्थ तत्वों के बने होते हैं। अभी तक लगभग 112-15 तत्व ज्ञात हैं जो पृथ्वी पर लगभग सभी पदार्थो को बनाते हैं इनमें लगभग 80 तत्व धातु हैं तथा बाकि अधातु या उपधातु है।
धातु
सामान्यतः धातु विधतु एवं उष्मा के सुचालक, आघातवर्धनिय एवं तन्य होते हैं। तथा कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में होते है। केवल पारा ही एक मात्र ऐसा धातु है जो कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में होता है।
रासायन शास्त्र के अनुसार धातु वे तत्व है जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते है। और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते है।
सामान्यतः धातु रासायनिक रूप से सक्रिय होते हैं। अर्थात वे मुक्त रूप में नहीं मिलते वे अन्य तत्वों के साथ क्रिया कर लेते हैं और संयुक्त रूप में (यौगिक) पाये जाते हैं। जिन्हें खनिज कहते हैं। कुछ धातु मूल रूप या धात्विक रूप में पाये जाते हैं। जैसे – सोना, चांदी प्लेटिनम आदि। कभी-कभी शु़़़द्ध धातु ढेर के रूप में पायी जाती है जिन्हें नगेट कहते हैं।
प्राकृतिक पदार्थ जिनमें धातु पृथ्वी में पायी जाती है खनिज कहलाते हैं। खनिज जिनसे आर्थिक महत्व के धातु आसानी से अलग किये जा सकते हैं। उन्हें अयस्क कहते हैं।
प्रमुख खनिजों के अयस्क निम्न है-
1. मुक्त अयस्क
इन अयस्कों में धातु मुक्त अवस्था में पायी जाती है।
उदाहरण
चांदी,सोना, काॅपर, प्लेटिनम, मर्करी आदि।
आयरन मुक्त अवस्था में मेट्रोइट के रूप में पाया जाता है।
2. सल्फाइड अयस्क
इन अयस्कों में धातु सल्फर के साथ क्रिया कर लेता है।
उदाहरण
सिसा(Pb)- गैलेना(PbS)
चांदी (Ag) – अर्जेन्टारड(Ag2S)
जस्ता (Zn) – जिंक ब्लेंड(ZnS)
मर्करी (Hg) – सिनेबार(HgS)
लोहा (Fe)- आयरन पायराइट(FeS2)
तांबा (Cu)- काॅपर पायराइट(CuFeS2)
3. आक्साइड अयस्क
इन अयस्कों में धातु आक्सीजन से क्रिया कर आक्साइड बनाती है।
उदाहरण
एल्यूमिनियम (Al) – बाॅक्साइड(Al2O3.2H2O)
तांबा (Cu)- क्यूपराइट(Cu2O)
जस्ता (Zn) – जिंकाइट(ZnO)
लोहा (Fe) – हेमेटाइट(Fe2O3)
4. कार्बोनेट
इन अयस्कों में धातु कार्बोनेट से क्रिया करते है।
तांबा (Cu)- मेलाकाइट(CuCo3)
लोहा (Fe) – सिडेराइट(FeCo3)
जस्ता (Zn) – कैलामाइन(ZnCo3)
इन अयस्कों के अलावा धातुएं सजीवों में भी पायी जाती है।
उदाहरण
पोटेशियम पौधों की जड़ों में उपस्थित होता है।
मैग्नीशियम क्लोरोफिल में पाई जाती है।
आयरन हीमोग्लोबिन में उपस्थित होता है।
कैल्शियम हड्डियों में उपस्थित होता है।
इन अयस्कों का हमारे जिवन में बहुत महत्व है। हम हमारे दैनिक जिवन में बहुत सारे अयस्कों का सिधे हि उपयोग करते हैं। जिनमें कुछ निम्न है।
1. सोडियम क्लोराइड( NaCl)- साधारण नमक
इसे समुद्र के खारे पानी या झीलों से प्राप्त किया जा सकता है। इसमें HCl गैंस प्रवाहित कर इसे शुद्ध कर लिया जाता है।
उपयोग
हमारे दैनिक जिवन में नमक के रूप में उपयोग होता है।
मांस मछली के परिरक्षण में उपयोग होता है।
नमक का उपयोग हिम मिश्रण बनाने में होता है क्योंकि नमक बर्फ को पिघलने से रोकता है।
इसका उपयोग अन्य उत्पादों जैसे – कास्टिक सोडा(NaOH), मीठा सोडा(NaHCO3) के निर्माण में होता है।
2. काॅपर सल्फेट पेन्टा हाइड्रेट()CuSO4.5H2O- नीला थोथा
यह एक नीले रंग का चमकीला क्रिस्टलीय पदार्थ है जो गर्म करने पर जल के अणु त्याग देता है।
उपयोग
विधुत बैटरियों एवं विधुत लेपन में किया जाता है।
काॅपर सल्फेट तथा चुने के मिश्रण का उपयोग किसानों द्वारा कवकनाशी के रूप में किया जाता है।
3. सिल्वर ब्रोमाइड(AgBr)
यह एक हल्के पीले रंग का क्रिस्टलीय यौगिक है।
उपयोग
इसका उपयोग फोटोग्राफी में किया जाता है।
4. सोडियम कार्बोनेट(Na2CO3.H2O) – कपड़े धोने का सोडा
यह सफेद क्रिस्टलीय ठोस है। जिसका जलिय विलयन क्षारीय होता है। यह अम्लों से क्रिया कर कार्बन डाईआक्साइड देता है।
उपयोग
कपड़े धोने में
जल को मृदु करने में
कांच, कागज, बेंकिंग सोडा आदि के उत्पादन में।
5. सिल्वर नाइट्रेट(AgNO3)- लुनर कास्टिक
उपयोग
रजत दर्पण बनाने में
फोटाग्राफी में
अमिट स्याही बनाने में।
6. सोडियम बाइकार्बोनेट(NaHCO3) – खाने का सोडा
उपयोग
खाने के सोडे के रूप में
औषधि के रूप में
अग्निशामकों में।
7. सोडियम हाइड्राॅक्साइड(NaOH) – कास्टिक सोडा
उपयोग
मशीनों को साफ करने में
रंजक उधोग में
प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में
साबुन, अपमार्जक, कागज उधोग में।
8. फिटकरी(K2SO4Al2(SO4)3.24H2O
उपयोग
जल को मृदु करने में।
अयस्कों का शोधन
किसी अयस्क से विभिन्न प्रक्रमों द्वारा शुद्ध धातु प्राप्त करना धातुकर्म कहलाता है।
अयस्कों से शु़द्ध धातु प्राप्त करने के लिए निम्न प्रक्रिया को अपनाया जाता है।
1. अयस्क को कुटना या पिसना
2. अयस्क का सान्द्रण(अयस्क से अशुद्धियां अलग करना)
3. धातु का पृथक्करण
4. धातु का शोधन
अधातु
सामान्यः अधातुएं विधुत व उष्मा की कुचालक, अतन्य होती हैं। ये धातुओं कि तरह कठोर न हो कर भंगुर होती हैं। सामान्यः आधातवध्र्य नहीं होती। तथा इनका गलनांक धातुओं से अपेक्षाकृत कम होता है।
प्रमुख अधातु निम्न है –
1. आक्सीजन O2
यह रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन गैंस है।जल में अल्प विलय है। प्रकृति में आॅक्सीजन मुक्त अवस्था में वायु में 20 प्रतिशत होती है। संयुक्त अवस्था में सल्फेट, कार्बोनेट आक्साइड आदि के यौगिकों के रूप में पाई जाती है। जल में 88 प्रतिशत आक्सीजन उपस्थित है।
उपयोग
संजीवों के श्वसन क्रिया में
रोगीयों के कृत्रिम श्वसन में हिलियम के साथ।
द्रव आक्सीजन राकेटों में ईंधन के रूप में प्रयुक्त होती है।
वेल्डिंग में ऐसीटिलीन के साथ प्रयोग किया जाता है।
2. नाइट्रोजन N2
यह भी आक्सीजन की तरह रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन है। यह जल में बहुत कम घुलती है। यह वायु से हल्की तथा अक्रिय गैंस है। यह वायु में मुक्त रूप में पायी जाती है। वायुमण्डल में आयतन की दृष्टि से 80 प्रतिशत नाइट्रोजन है। संयुक्त अवस्था में यह अमोनिया तथा अमोनियम लवणों में पाई जाती है।
उपयोग
अक्रिय होने के कारण विधुत बल्बों में।
द्रवित नाइट्रोजन का उपयोग प्रशीतन कार्यो में।
ऊंचे तापमान मापने वाले थर्मामिटरों में।
कृत्रिम खाद बनाने में।
नाइट्रिक अम्ल, अमोनिया के निर्माण में।
3. हाइड्रोजन H2
यह गैंस भी रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन है। यह वायु से हल्की है। तथा ज्वलनशील है। यह मुक्त अवस्था में अल्प मात्रा में वायुमण्डल में पायी जाती है। संयुक्त अवस्था में यह जल, अम्ल, क्षार, पैट्रोलिय, तेल, वसा आदि में पाई जाती है।
ब्रह्माण्ड में(पृथ्वी पर नहीं) यह सबसे ज्यादा पाया जाने वाला तत्व है। तारों तथा सुर्य का अधिकांश द्रव्यमान हाइड्रोजन का बना है।
उपयोग
गुब्बारे भरने में।
राकेटों में ईंधन के रूप में द्रव हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है।
वनस्पति घी के उत्पादन में।
कोयले से कृत्रिम पेट्रोल बनाने में।
आक्सी-हाइड्रोजन ज्वाला का उपयोग वेल्डिंग में।
4. क्लोरिनCl2
यह हल्के हरे-पीले रंग की अति तीक्ष्ण गंध वाली गैंस है।यह विषेली गैंस है। वायु से भारी तथा जल में अघुलनशील है।तथा स्वयं न जलकर जलाने में सहायक है। यह अत्यधिक क्रियाशील गैंस है अतः यह मुक्त अवस्था में नहीं पायी जाती। संयुक्त अवस्था में यह साधारण नमक(NaCl), पौटेशियम क्लोराइड(KCl), मैग्नीशियम क्लोराइड(MgCl) के यौगिक के रूप में पायी जाती है।
उपयोग
पीने के पानी को जीवाणु रहीत करने में।
क्लोरोफार्म, डी.डी.टी., HCl के निर्माण में।
कागज व कपड़ा उद्योग में विरंजक के रूप में।
5. फास्फोरस(P)
यह शुद्ध अवस्था में सफेद रंग का नर्म पदार्थ है। जो धीरे-धीरे पीला पड़ जाता है। इसमें लहसुन जैसी गंध आती है। यह जल में अविलेय तथा अत्यधिक क्रियाशील होने के कारण वायु में स्वतः ही जल उठता है। इसलिए इसे जल में रखा जाता है।
यह मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता। संयुक्त अवस्था में फास्फेट के रूप में पाया जाता है।
उपयोग
दिया सलाई बनाने में।
धुएं के बादल बनाने में।
आतिशबाजी आदि में।
कैल्सियम फाॅस्फाइड के रूप में फास्फोरस चुहों के लिए विष का कार्य करता है।
6. गंधक(S)
बहुत प्राचिन समय से ज्ञात तत्व औषधीयों एवं युद्धों में प्रयुक्त होता था। यह हल्के पिले रंग का स्वादहिन, गंध रहित ठोस पदार्थ है जो जल में अविलेय है।
यह मुक्त अवस्था में ज्वालामुखी, झरनों के निकटवर्ती स्थानों में पाया जाता है। संयुक्त रूप में, सल्फाइड, व सल्फेट के रूप में पाया जाताहै।
उपयोग
चर्म रोग एवं रक्त शोधन औषधि के रूप में।
कीटनाशी के रूप में।
बारूद एवं दिया सलाई उद्योग में।
रबर के वल्कनीकरण में।
7. कार्बन C
पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों में कार्बन एक प्रमुख एवं महत्वपूर्ण तत्व है। इसके प्राकृतिक रूप में तीन(6C12, 6C13, 6C14) समस्थानिक है। इसे जिवन का आधार कहा जाता है।
कार्बन में कैटिनेशन नामक एक विशेष गुण पाया जाता है जिसके कारण इसके प्रमाणु आपस में संयोग कर लम्बी श्रंखला बनाते हैं। कार्बन के इसी गुण के कारण पृथ्वी पर कार्बनिक पदार्थों की संख्या सबसे अधिक है। यह मुक्त एवं संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाया जाता है। इसके बहुरूपों में हिरा, ग्रेफाइट, फुलेरिन, काजल, कोयला प्रमुख है।
उपयोग
पुरातात्विक अवशेषों की आयु ज्ञात करने में।
मनुष्य के शरीर में 18.5 प्रतिशत कार्बन होता है।
प्रकृति में कार्बन यौगिकों की संख्या 10 लाख से भी अधिक है।
कार्बन के कुछ यौगिक निम्न है –
कार्बनडाई आक्साइडCO2
यह गंधहीन, रंगहीन गैंस है। सामान्य ताप व दाब पर यह गैंसीय अवस्था में रहती है। वायुमण्डल में इसकी मात्रा 0.03-0.04 प्रतिशत तक पाई जाती है।यह एक ग्रीन हाउस गैस है। क्योंकि सुर्य से आने वाली किरणों को तो यह पृथ्वी पर पहुंचने देती है लेकिन पृथ्वी से गर्मी को अंतरिक्ष में जाने से रोकती है।
पृथ्वी पर सभी सजीव श्वसन में कार्बन डाइआक्साइड को छोड़ते है। जबकि पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते समय इस गैस को ग्रहण कर कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं।
उद्योगों में इसे चुना पत्थर को गरम करके बनाया जाता है। और सामान्यतः वायु में कार्बन (लकड़ी, कोयला) को जलाने पर यह गैंस बनती है।
कार्बन डाईआक्साइड का ताप कम करने पर यह शुष्क ठोस में परिर्तित हो जाती है जिसे शुष्क बर्फ कहा जाता है। इसका उपयोग वस्तुओं को ठण्डा रखने में किया जाता है। इसका उपयोग अग्निशमन में भी किया जाता है।
इसका उपयोग यूरिया निर्माण में भी किया जाता है।
कार्बन मोनोआक्साइडCO
इसे वायु की अल्प मात्रा में कार्बन जलाने पर प्राप्त किया जा सकता है। उद्योंगों में इसे कोक पर भाप प्रवाहित कर बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में कार्बन मोनोआक्साइड के साथ हाइड्रोजन गैस भी निकलती है। इस मिश्रण को वाटर गैंस भी कहते हैं। यदि भाप के स्थान पर वायु का प्रयोग करें तो कार्बन डाईआॅक्साइड के साथ नाइट्रोजन निकलती है जिसे प्रोडयूसर गैंस कहते हैं।
इसका उपयोग औद्योगीक ईंधन में किया जाता है। कार्बनमोनो आक्साइड रक्त में हीमोग्लोबीन के साथ मिलकर संकुल बनाती है। जिससे शरीर में आक्सीजन प्रवाह रूक जाता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
सी. फ. सी.(क्लोरो फ्लूरो कार्बन CFC)
यह कार्बन, क्लोरिन, फ्लोरिन परमाणुओं का यौगीक है। यह अक्रिय अज्वलनशील एवं विषहीन कार्बनिक यौगिक है। इसके यौगिक ओजोन गैस के अणुओं का विघटन कर पृथ्वी के वायुमण्डल में ओजोन परत को नष्ट करतें है। इसलिए इसके निर्माण पर मानट्रीयल प्रोटोकोल के अन्तर्गत चरणबद्ध रूप से रोक लगा दि गई है।
इसका उपयोग रेफ्रीजरेटर, एयर कण्डीशनर में शीतलक के रूप में, कम्प्युटर के पुर्जो की सफाई में, फोम निर्माण में किया जाता है।
हाइड्रोकार्बन
हाइड्रोकार्बन यौगिक वे कार्बन है जो हाइड्रोजन और कार्बन के परमाणुओं से मिलकर बने है। इनका मुख्य स्त्रोत भूतैल है। प्राकृतिक गैंस में भी हाइड्रोकार्बन पाये जाते है। हाइड्रोकार्बन संतृप्त व असंतृप्त होते है।
प्रमुख हाइड्रोकार्बन निम्न है –
एल. पी. जी. (L.P.G.)- रसाई गैंस
एज. पी. जी. कई हाइड्रोकार्बन का मिश्रण है। यह एक ज्वलनशील गैस है। जो घरों में खाना पकाने, वाहनों में ईंधन के रूप में प्रयोग कि जाती है। अब एल. पी. जी. का प्रयोग सी. फ. सी. के स्थान पर होने लगा है। इसमें मुख्य रूप से प्रोपेनC3H8, व ब्युटेन C4H18 गैंस होती है। इसका क्वथनांक कमरे के तापमान से भी कम होता है। यह एक गंधहीन गैंस है। रिसाव का पता लगाने के लिए इसमें इथेन थायोल या थायाडीन या मार्केप्टेन मिलाते है।
सी. एन. जी.(C.N.G.)
यह भी हाइड्रोकार्बन का मिश्रण है। यह प्राकृतिक गैंस है। जिसे उच्च दाब पर संपीड़ीत किया जाता है। इसमें 80 प्रतिशत मिथेन CH4का प्रयोग होता है। मिथेन एक सरल हाइड्रोकार्बन है। जो दलदली भूमी से निकलती है। इसलिए इसे मार्श(दलदल) गैंस भी कहते है।
सी. एन. जी. में 15-16 प्रतिशत इथेन C2H6 होती है। सी. एन. जी. एक रंगहीन, गंधहीन व विषहीन गैंस है। इसका उपयोग वाहनों में ईधन के रूप में करने के लिए इसे उच्च दाब(200-250 किग्रा/वर्ग सेमी.) पर दबाया जाता है।
ट्राईक्लोरो मिथेन CHCl3 -क्लोरोफाॅम
यह भी कार्बन का यौगीक है। यह रंगहीन व सुगंधीत पदार्थ है। जिसका प्रयोग पहले चिकित्सा क्षेत्र में शल्यचिकित्सा से पहले मरीज को बेहोश करने में किया जात था। लेकिन आधुनिक युग में इसके अन्य विकल्पों का प्रयोग किया जाता है।
क्लोरोफाॅम के अधिक प्रयोग से शरीर के कई अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
प्लास्टिक
यह भी कार्बन का यौगिक है। यह हमारे दैनिक जिवन में काम आने वाली वस्तुओं थैलियों, बाल्टी, जुते आदि मनाने में प्रयोग किया जाता है। टेफलाॅन का उपयोग नाॅन – स्टिक बर्तन बनाने में किया जाता है।
नायलाॅन
यह भी कार्बन का एक यौगिक है। यह हेक्सामेथिलीन डाइऐमीन तथा ऐडिपिक अम्ल का संघन्न करवाने पर प्राप्त होता है।
इसका प्रयोग वस्त्र उद्योग में, टायर बनाने में, रसियां बनाने में, ब्रुश क बाल बनाने में किया जाता है।
टेरिलीन
यह एक पालीएस्टर है जिसका प्रयोग रस्सी, नावों के पाल, सुरक्षा बेल्ट आदि बनाने में किया जाता है।
साबुन
यह भी कार्बन का यौगीक है। रासायनिक रूप से साबुन उच्च वसा – अम्लों के सोडियम अथवा पोटेशियम लवण होते हैं। साबुन के निर्माण में ग्लिसराॅल नामक सहउत्पाद भी प्राप्त होता है। पारदर्शी साबुन बनाने में एथेनाॅल तथा दाढ़ी बनाने के साबुन में रोजिन नामक पदार्थ मिलाया जाता है।
साबुन बनाने के लिए वनस्पति तेलों(सरसों, मुंगफली) की कास्टिक सोडे से क्रिया करवाई जाती है। तथा इसमें साधारण नमक NaCl डालकर इसे पृथक कर लिया जाता है।
अपमार्जक – साबुन रहित साबुन
अपमार्जक भी साबुन की तरह ही धुल मिट्टी व चिकनाई हटाने का कार्य करते है। ये लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रंखला युक्त सल्फूरिक अम्ल अथवा सल्फानिक अम्ल के सोडियम लवण होते है।
अति महत्वपूर्ण तथ्य :
- सैकरीन चीनी से 500 गुणा मिठा होता है।
- शुद्ध जल विधुत का कुचालक होता है।
- कच्चे फलों को पकाने में एथिलीन एवं एसीटिलीन गैंस प्रयुक्त कि जाती है।
- रेर्फिजरेटरों में बर्फ जमाने में द्रवित अमोनिया का उपयोग किया जाता है।
- पृथ्वी पर सर्वाधिक पाई जाने वाजी गैंस/अधातु – आक्सीजन है।
- लोहे पर जंग लगने से लोहे का वजन बढ़ जाता है।
- भारी जल का उपयोग परमाणु भट्टी में होता है।
- अश्रु गैंस में एक्रोलिन व एल्फा क्लोरो एसीटो फिनाॅल आदि का प्रयोग होता है।
- नाइट्रस अक्साइड को सूंघने पर आदमी हंसने लगता है।
- रैक्सिन(रेग्जिन) एक कृत्रिम चमड़ा है।
- अभ्रक उष्मा का सुचालक एवं विधुत का कुचालक है।
- प्रकृति में कार्बन यौगिकों की संख्या 10 लाख से भी अधिक है।
- आर्वत सारणी पर q व j के नाम से कोई तत्व नहीं है।
- कैंसर में उपयोगी धातु – कोबाल्टCo-60
- कैरोसीन में रखी जाने वाली धातु – सोडियमNa , पोटेशियम K
- पत्तियों का रंग हरा क्लोरोफिल के कारण होता है, क्लोरोफिल में पायी जाने वाली धातु – मैग्निशियम Mg
- पानी में रखा जाने वाला तत्व – फास्फोरस
- सर्वाधिक पायी जाने वाली अक्रिय गैंस – आर्गन Ar
- सबसे क्रियाशील हेलोजन गैस फ्लोरीन है।
- हिमोग्लोबिन में पायी जाने वाली धातु – लोहा Fe
- मनुष्य के आंसू में सोडियम क्लोराइड पाया जाता है।
- सबसे कठोर तत्व – टंगस्टन W
- हीरा सबसे कठोर अधातु है।
- सबसे महंगी धातु – प्लेटिनम Pt
- सबसे आॅक्सीकरण अवस्था दिखाने वाली तत्व –
- प्लास्टर आॅफ पेरिस CaSO4.1/2H2O का उपयोग हड्डी जोड़ने में किया जाता है।
- आतिशबाजी के दौरान हरा रंग बेरियम व लाल रंग स्ट्रांन्शियम के कारण होता है।
- यूरिया प्रयोगशाला में निर्मित पहला कार्बनिक यौगिक है। इसका उपयोग उर्वरक के रूप में होता है।
- धुंए के बादल बनाने में पीला फास्फोरस उपयोग किया जाता है।
- कृत्रिम वर्षा कराने में सिल्वर आयोडाइड का उपयोग किया जाता है।
- चुहे मारने की दवा का वैज्ञानिक नाम जिंक फास्फाइड है।
- जिंक क्लोराइड का उपयोग लकड़ी को किड़ों से बचाने में किया जाता है।
- कपूर को ही नैप्थेलिन कहते है जिसका उपयोग कपड़ों से किड़ों को दुर रखने में किया जाता है।
- पोटेशियम परमेगनेट KMnO4 को लाल दवा के नाम से भी जाना जाता है। यह पानी में किटाणुओं को नष्ट करने में काम आती है।