कालाजार पर शोध करने के लिए वर्ष 2014 में भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान से नवाजे गए बिहार के डॉ. मोहन मिश्रा का निधन (Dr. Mohan Mishra passed away) हो गया है. दरभंगा में डॉक्टर के रूप साक्षात ‘भगवान’ के रूप में डॉ. मोहन मिश्रा. को लोग मानते थे. दरभंगा के बंगाली टोला में अपने आवास पर पद्मश्री डॉ. मोहन मिश्रा की हार्ट अटैक से मौत हो गई।
दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल यानी DMCH में मेडिसिन विभाग के एचओडी रहे डॉ. 1995 में अवकाश ग्रहण किया. उन्हें कालाजार पर शोध के लिए साल 2014 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. अवकाश के बाद भी वे घर पर ही मरीजों को देखते थे. उनकी दवाएं अचूक असर करती थीं. यही वजह थी कि जीवन के अंतिम दिनों में भी उनके यहां मरीजों का तांता लगा रहता था. कुछ दिन पहले से तबीयत खराब होने के कारण उन्होंने मरीजों को देखना बंद कर दिया था.
डिमेंशिया की दवा :
लाइलाज डिमेंशिया से पीड़ित कई मरीज उनके पास आते थे, लेकिन उचित दवा नहीं होने के कारण उनका इलाज नहीं हो पाता था। ऐसी स्थिति में, डॉ. मोहन मिश्रा ने ब्राह्मी के पौधे के साथ इस बीमारी का इलाज किया। टीम का गठन कर 2015 से 2016 तक 12 मरीजों पर इसका परीक्षण किया गया। शोध सफल रहा। यह शोध वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के पेशेवर नेटवर्क ‘रिसर्च गेट’ पर भी उपलब्ध है। इसे फ्यूचर हेल्थकेयर जर्नल, लंदन ने भी प्रकाशित किया है। उनका यह शोध वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन में भी पंजीकृत किया गया है।
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