अरबों साल पहले युवा ब्रह्मांड में तारों की उत्पत्ति संबंधी गतिविधियों पर नजर रखने वाले खगोलविद लंबे समय से इस तथ्य की खोजबीन करते रहे हैं कि लगभग 8-10 अरब वर्ष पहले आकाशगंगाओं में तारों की उत्पत्ति अपने उच्चतम स्तर पर थी और उसके बाद उसमें लगातार गिरावट आई। इसके पीछे के कारणों की खोज करने पर उन्होंने पाया कि तारों की उत्पत्ति संबंधी गिरावट का कारण संभवत: आकाशगंगाओं में ईंधन का खत्म होना रहा होगा।
हाइड्रोजन निर्माण के लिए महत्वपूर्ण ईंधन आकाशगंगाओं में मौजूद परमाणु हाइड्रोजन सामग्री है। करीब 9 अरब साल पहले और 8 अरब साल पहले आकाशगंगाओं में परमाणु हाइड्रोजन सामग्री को मापने वाले दो अध्ययनों ने उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद की है।
पुणे के नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स (एनसीआरए-टीआईएफआर) और बेंगलूरु में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान रमण रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) के खगोलविदों की एक टीम ने 9 अरब साल पहले आकाशगंगाओं में परमाणु हाइड्रोजन गैस सामग्री को मापने के लिए विशाल मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) का उपयोग किया। यह ब्रह्मांड का सबसे प्रारंभिक युग है जिसके लिए आकाशगंगाओं में परमाणु हाइड्रोजन सामग्री का मापन किया जाता है। नया परिणाम इस समूह के पिछले परिणाम की महत्वपूर्ण तरीके से पुष्टि करता है जहां उन्होंने 8 अरब साल पहले आकाशगंगाओं में परमाणु हाइड्रोजन सामग्री को मापा था और ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं की हमारी समझ को काफी पहले तक पहुंचा दिया था। नया शोध द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स के 2 जून 2021 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
एनसीआरए-टीआईएफआर में पीएचडी के छात्र आदित्य चौधरी और नए एवं 2020 दोनों अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा, ‘हमारे नए परिणाम कहीं अधिक समय पहले की आकाशगंगाओं के लिए हैं लेकिन वे अभी भी तारों की उत्पत्ति संबंधी अधिकतम गतिविधियों के युग के अंत की ओर हैं। हमने पाया कि 9 अरब साल पहले आकाशगंगाएं परमाणु गैस में काफी समृद्ध थीं और तारों में मौजूद परमाणु गैस की मात्रा के मुकाबले उनमें लगभग तीन गुना अधिक द्रव्यमान था। वह आज की मिल्की वे जैसी आकाशगंगाओं से काफी अलग था जहां गैस का द्रव्यमान तारों में मौजूद परमाणु गैस के मुकाबले लगभग दस गुना कम है।’
परमाणु हाइड्रोजन गैस के द्रव्यमान की माप जीएमआरटी के उपयोग के जरिये की गई जहां परमाणु हाइड्रोजन में वर्णक्रमीय रेखा की खोज की गई जिसे केवल रेडियो टेलीस्कोप के जरिये ही पता लगाया जा सकता है।
इस शोध के लिए भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषण किया गया था।
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